काश ये मन बाबरा भी समझ पता की इस संसार मे सब रंगीन दिखने के बाद भी सब रंग-हीन हैं यहाँ दिल से बात करना गुनाह माना जाता है या एक ढोंग छलावा मैं क्या कहूं मन बहुत विचलित उदास है पर हां मैं अपने मन की ही करती हूं जो आवाज अंदर से आती हो उसे ही करती हूं और महानुभाव को लगता है कि मैं गलत हूं आलिंगन के लिए हुँ पर ऐसा नहीं है मानो तो सब अपने हैं वरना साथ रहने वाले भी अपने नहीं है सब वैसा ही है जैसा कि आपने कहा अंबर और धारा एक दिखते तो है पर एक होते नहीं है बस दूर से देखने वालों को लगता है वास्तव में ये साथ हैं एक हैं पर दिखना है आकलन है अब सब वही सत्य हैं देखने बालो के लिए पर ऐसा नहीं हैं
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